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Satyamev Jayate
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होम >> गंगा नदी घाटी >> प्रदूषण
प्रदूषण संबंधी संकट
★ तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, जीवन के निरंतर उंचे होते हुए मानकों तथा औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के हुए अत्यधिक विकास के फलस्वरुप सामान्यत: जल संसाधन तथा विशेषत: नदियों का जल अपक्षरण के विभिन्न स्वरुपों के संपर्क में आकर प्रदूषित हुआ है | विशाल गंगा नदी भी इसका अपवाद नहीं रही है | जल की गुणवत्ता में गिरावट का प्रभाव तत्काल ही लोगों पर हो जाता है | अपने कुछ क्षेत्रों में गंगा नदी, विशेषकर, कम पानी वाले मौसम के दौरान, नहाने के लिए तक उपयोग में नहीं रह गई है | वैश्विक जलवायु परिवर्तन और गंगा के प्रवाह पर हिम शैलों के गलने के प्रभाव की चुनौतियों तथा साथ ही नदी के उपरी भागों में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए ऐसे मुद्दे दृष्टिगत हुए हैं, जिनके प्रति व्यापक प्रतिक्रिया व्यक्त किए जाने की आवश्यकता है |
★ गंगा घाटी में प्रतिदिन लगभग 12,000 मिलियन लीटर (एमएलडी) जल-मल व्ययन उत्सर्जित किया जाता है जिसके लिए वर्तमान में केवल लगभग 4000 एमएलडी क्षमता की जल-उपचार प्रणाली विद्यमान है | गंगा नदी के किनारे स्थित विभिन्न श्रेणी-I और II शहरों से इसमें लगभग 3000 एमएलडी जल-मल व्ययन प्रवाहित किया जाता है जिसकी तुलना में अभी तक केवल लगभग 1000 एमएलडी की जल-उपचार क्षमता ही सृजित की गई है | औद्योगिक प्रदूषकों का परिमाण-वार योगदान लगभग 20 प्रतिशत है, परंतु इसकी विषाक्त तथा जैव-अपक्षरणीय प्रकृति के कारण इसका महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है | राम गंगा और काली नदियों के आवाह-क्षेत्रों तथा कानपुर में स्थित औद्योगिक क्षेत्र औद्योगिक प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं | प्रदूषण के लिए प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं - कानपुर में स्थित चर्मशोधन कारखाने, कोसी रामगंगा कागज मिलें तथा चीनी मिलें |


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